Thursday 21 July 2011

अम्न का पहर

कहीं फट रहे हैं बम, कहीं बरपा हुआ कहर
शब कब से चल रही जाने होगी कब सहर

कुछ लोग मर गए और कुछ हो गए फना
उनको नहीं फिकर कोई वो हैं इससे बेखबर

बच्चे हुए अनाथ और बहनें हुंई बेवा 
इससे भी है अनजान और ये सो रहा शहर

वो धर्म बेचते हैं और करते हैं सियासत
इंसानियत को वो ही हैं जो दे रहे जहर

वो माँ बिलख रही है जिसका पूत मर गया
मुड़ मुड़ के देखती है वो बेटा गया जिधर

सुनता हूँ पब में झूमते और नाचते थे वो
खून में था सन रहा जब इस देश का जिगर

इंतज़ार है 'फणि' कि शब ये ढल भी जाये अब
खुशियों का शबब ले कर आये अम्न का पहर

Wednesday 20 July 2011

Cat and Pooh

It was real fun writing this for my niece. She wanted to hear a story in the night before going to bed and this rhyme was formed.




There lived a pussy cat
in a small house
who liked to eat rat 
and little mouse


she had a master
his name was john
he was gentleman
very well known


one day the pussy cat
went to the zoo
she met there a bear
his name was Pooh


Pooh had one friend
he was Tigger
he looked same as the cat
but he was bigger


Pooh was so cute
he was very bonny
he loved his jar
filled with honey

Saturday 16 July 2011

जाँ अपनी हथेली पे लिए घूमता हूँ

रोज़ कुछ नए सपने कुछ ख्वाब नए बुनता हूँ
एक नयी आस लिए मन की उड़ान चुनता हूँ

एक दिन ख्वाब में देखे गए महल गिर जायेंगे 
जानते हुए भी रोज़ नयी दीवार एक चुनता हूँ

सब हैं चोर हुकूमत के इन गलियारों में
फिर भी अपने लिए सरकार नयी चुनता हूँ

यकीन नहीं कर पाता ख़ुदा में न ही जन्नत में
अब तो हर रोज़ ही एक बुरी खबर सुनता हूँ

आजकल आम हुए हैं बम के धमाके 'फणि'
इसलिए जाँ अपनी हथेली पे लिए घूमता हूँ