Wednesday 19 December 2012

जन्मदिन और टॉफियां




जन्मदिन, जब बच्चा बनने की चाहत
एक बार फिर उमड़ आती है दिल में
और कुछ बचपन की सोंधी खुशबू भर आती है
केक नहीं होता था, ना चोकोलेट ही होता था
बर्फियाँ होती थी गाँव के हलवाई की दूकान की
और टॉफियां काका की छोटी परचून की दूकान से
उन टॉफियों का अपना अलग मज़ा होता था
आज उन्ही यादों की खुशबू कों ताज़ा करने की कवायद लिए
कुछ टॉफियां लाया हूँ और साथ हैं बचपन की मीठी यादें

Thursday 22 November 2012

चंद शेर आपकी नज्र

न हुआ इश्क न सही, कोई महबूब भी मिला नहीं 
चलो कम से कम शब्-ए-हिजरा सा तो कोई गिला नहीं

लाख मिन्नतें कर लो ख़ुदा से, न वो सुनता है न सुनेगा तेरी
दो कदम बढ़ के हाथ थामो तो, उससे बढ़ कर दुआ नहीं होती.

जुबां खामोश रहे और कुछ कहने की ज़ुरूरत भी न हो
कुछ ऐसा हो कि कोई तमन्ना, कोई मसर्रत भी न हो

ख़्वाबों को भी रातों में दस्तक देने का बहाना न मिले 
और इस जहां में किसी और को पाने की चाहत भी न हो 

जुबां-ए-ख़ास को कुछ कहने की ज़ुरूरत कहाँ होती है 
तमन्नाएं व मसर्रतें भी इंसानियत की ही जुबां होती हैं

क़ातिल ने क़त्ल करके पूछा यूँ हाल-ए-दिल 
जो जान रह गयी थी, वो उसको भी ले गया

हाय ये शर्म-ओ-हया और ये गुस्ताख नज़र 
मेरे क़ातिल ने कुछ ऐसे ही हथियार छुपा रखे हैं

कहीं दैर-ओ-हरम तो कहीं बंदगी पे सवाल 
ख़ुदा परस्तों ने ये अजब बवाल बना रखे हैं 

सुर्ख गालों पर वो हंसी की चमक
आपने आँखों में क्या राज़ छुपा रखे हैं 

Monday 8 October 2012

गाँव मेरा बूढा हो चला है

गाँव मेरा बूढा हो चला है
नयी कोपलें अब कहाँ आती है इसमें
बस पुरानी कुछ शाखें ही बची हैं
वो भी ज़र्ज़र हो गयी हैं
न वो जोश है न ही वो रंग
वो तो गनीमत है
कि आते जाते त्यौहार
थोडा रंग, थोड़ा जूनून भर जाते हैं
बहुत छोटा बसंत आता है
ये थोड़ा जवान दिखने लगता है
पर त्योहारों के जाने के बाद
यहाँ हमेशा पतझड़ सा मौसम है
गाँव के बूढ़े इकट्ठे हो बूढ़े पेड के नीचे
अपने जिंदगी के अंतिम दिनों कों गिनते हैं
और अपनी जवानी की यादें बुनते हैं
मुझे है याद दिन जो बीते थे यहाँ पर
वो हंसना खेलना कबड्डी, पिट्टो हमारा
सडको पर खेलते बच्चे अब दिखते कहाँ हैं
वो राजनीति पर गहम चर्चे होते कहाँ है
अभी तक गाँव की जो तस्वीर
मेरे ज़हन में बसी थी
वो झूठी लगने लगी है
अब आया हूँ तो लगता है
कि गाँव मेरा बूढा हो चला है

Tuesday 2 October 2012

कंक्रीट के जंगल



कौन कहता है जंगल बसाए नहीं जाते
हमारे शहरों को देखो कंक्रीट के जंगल खड़े हुए हैं
फर्क इतना है की इनमे स्वच्छंदता नहीं  है
ये जंगल पिंजरों से बने हैं
जिनमे प्रवासी पंछी आ कर बसेरा डालते हैं
और हमेशा की कैद को स्वयं ही अपनाते हैं
'और' की चाह में आते हैं अपने घर से दूर
फिर भूल जाते हैं वो चहचहाना, गाना
मैं भी आज घर से मीलों दूर एक आशियाना ढूंढ रहा हूँ
उसी कंक्रीट के जंगल में हमेशा कैद होने के लिए

Thursday 2 August 2012

दुनिया ने मुझको हाय ये क्या क्या बता दिया

जिसके भी जी में आया मुझे वो बता दिया 
दुनिया ने मुझको हाय ये क्या क्या बता दिया 

हिन्दू या मुसलमान ही बस बच गए यहाँ
इंसान को ढूँढा तो मुझे काफिर बता दिया

करते ख़ुदा ख़ुदा पर खुद की ही सोचते
सच कर दिया बयान तो साधू बता दिया

इश्वर और अल्लाह के घर बन रहे यहाँ 
इंसान को फूटपाथ की चादर बता दिया 

सिस्टम की खिलाफत में जो आवाज़ की बुलंद 
सिस्टम के नुमाइंदो ने बागी बता दिया 

थक कर ज़रा इस भीड़ से हो दूर जो बैठा 
इस भीड़ ने न देर की पागल बता दिया 

खुद को घिसा है मैंने इस दुनिया की संग पर 
खुशबू जो आयी मुझसे तो 'चन्दन' बता दिया

Monday 2 July 2012

Stardust left behind

I am not sure if this can be called as a poem or not but these are the feelings that poured out of me when a beloved person died leaving us behind with his memories. Carl Sagan once said we are made of star stuff and I think we really have people around us who glow and give us their warmth and everything , make us feel like a star, and one day leave us with only one thought that this were never happened and they would have been there still with us.


Someone has gone forever
in the depths of the universe unknown
for not coming back, ever.
leaving behind memories all we known
Left behind with lot of pain
we feel helpless in our brain

Moments lived together with all
that is what I am trying to recall
All those moments we have cherished
Seems that all has gone all has perished
All these thoughts make me cry
Why did it has to happen I pry

All the courage that I have left
I gather my strength that I can claim
Trying to collect all the memory that I can
which lives in my heart as immortal flame

this is how life is I come to think
this thought make my eye not to blink
"People are made of star stuff"
Carl Sagan once said
They spread warmth and brightness
when they are not dead

While departing from our life
which is somehow a must
they leave their memories
with us as ‘stardust’

Saturday 25 February 2012

हम तो इसी में खुश हैं की जल के रौशनी दे पाए

हम तो इसी में खुश हैं की जल के रौशनी दे पाए
दफन भी हो गए तो इस सरजमीं को नमी दे पाए

बला सी ख़ूबसूरत जो आँखे हैं उन्ही की कसम
तेरी वही आँखे थी जो मुझे ये ख्वाब हंसी दे पाए

उसने खेतों में दिन रात खून और पसीने बहायें है
ताकि अपने बच्चों को वो कुछ ग़ज़ ज़मीं दे पाए

वो तो सैयाद है, उसे काम पिंजरों में कैद परिंदों से
कब फडफडाते पंख उसकी आँखों को नमी दे पाए

या खुदा! आज फिर से इंसानियत का क़त्ल हुआ
अब वो वजह ढूंढता हूँ जो तेरे होने का यकीं दे पाए 

Sunday 22 January 2012

यूँ ही...

Facebook के एक मित्र हैं डॉ. फैयाज़ उद्दीन उनसे बातों बातों में चंद अश'आर जुड़ गए, उम्मीद है पसंद आयेंगे. सभी एक दुसरे से अलग से हैं फिर भी पेश-ए-खिदमत है...

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सपनें भी देखें सदा मुस्कराएं खुल के मिलें हम हसें और हसाएं
दिन चार जीने हैं जी भर जियें हम दुःख बाँट लें और खुशियाँ लुटाएं 
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वो मेरा नहीं था न सही उसकी यादें तो मेरी अपनी हैं
जिंदगी में वो नहीं न सही ये ख्वाब मेरे तो अपने हैं 
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उससे मिलता हूँ अपने दिल की वापसी की आस लिए
दिल तो नहीं मिलता हाँ उसे धड़कने का बहाना मिल जाता है
---तेरी आवाज़ सुन कर धडकनें तेज हो गयी
दिल को जो हाथ लगाया तो वो तेरा निकला

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बेकार ही मैं तुझे बेवफा मान बैठा था
ये मेरा दिल था जो असल में बेवफा निकला
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तुम  मसरूफ थे अपनी तनहाइयों में हम भी मजबूर अपनी आवारगी से
पता भी नहीं चला कब तबाह हो गए रिश्ते हमारे हमारी ही बेचारगी से
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